भ्रष्टाचार है
महंगाई है
बीस का ख़र्चा है
दस की कमाई है
इधर कुआँ है
उधर खाई है।"
देश की जनता का क्या होगा?"
वो बोले-"जनता का देर्द ख़जाना है
आँसुओं का समन्दर है
जो भी उसे लूट ले
वही मुक़द्दर का सिकन्दर है।"
हमने पूछा-"देश का क्या होगा?"
वे बोले -"देश बरसो से चल रहा है
मगर जहाँ का तहाँ है
कल आपको ढूँढना पड़ेगा
कि देश कहाँ है
कोई कहेगा-ढूँढते रहिए
देश तो हमारी जेब में पड़ा है
देश क्या हमारी जेब से बड़ा है???"
महंगाई है
बीस का ख़र्चा है
दस की कमाई है
इधर कुआँ है
उधर खाई है।"
देश की जनता का क्या होगा?"
वो बोले-"जनता का देर्द ख़जाना है
आँसुओं का समन्दर है
जो भी उसे लूट ले
वही मुक़द्दर का सिकन्दर है।"
हमने पूछा-"देश का क्या होगा?"
वे बोले -"देश बरसो से चल रहा है
मगर जहाँ का तहाँ है
कल आपको ढूँढना पड़ेगा
कि देश कहाँ है
कोई कहेगा-ढूँढते रहिए
देश तो हमारी जेब में पड़ा है
देश क्या हमारी जेब से बड़ा है???"
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