Prakash thakur

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Sunday, 4 September 2011

Maithili kahani khatar kaka



खट्टर कका दलान पर बैसल भाङ्घ घाटैत छलाह । हमरा अबैत देखि बजलाह— हाँ..हाँ…..ओम्ह र मरचाइ रोपल छैक, घूमि कऽ आबह ।
हम कहलिऐन्ह.— खट्टर कका, आइ जयवारी भोज छैक, सैह सूचित करय आयल छी ।
खट्टर कका पुलकित होइत बजलाह…बाह बाह ! तखन सोम�े चलि आबह । दु एकटा धङ्घेबे करतैक त की हैतैक ? …..हँ, भोजमे हैतैक की सभ ?
हम—दही चूडा चीनी ।
... खट्टर कका— बस, बस, बस । सृष्टिगमें सभ सँ उत्कृ ष्टू पदार्थ यैह थीक । गोरसमे सभ सँ माँगलिक वस्तुू— दही, अन्न मे सभक चूडामणि—चूडा, मधुरमे सभक मूल—चीनी । एहि तीनूक सँयोग बूम�ह तै त्रिवेणी—सँगम थीक । हमरा त त्रिलोकक आनन्दभ एहिमे बूमि� पडैत अछि । भूडा…भूलोक, दही…भुवर्लोक, आ चीनी…स्वकर्लोक ।
हम देखल जे खट्टर कका एखन सरँगमे छथि । सभटा अद्भुते बजताह । अतएव काज अछैतो गप्पज सुनबाक लोभें बैसि गेलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हम त बुम�ै छी जे एही भोजन सँ साँख्यक दर्शनक उत्प त्ति भेल अछि ।
हम चकित होइत पुछलिऐन्हु—ऐं ! दही चूडा चीनी सँ साँख्यच दर्शन ! से कोना ?
खट्टर कका बजलाह…एखन कोनो हडबडी त ने छौह ? तखन बैसि जाह । हमर विश्वाैस अछि कपिल मुनि दही चूडा चीनीक अनुभव पर तीनू गुणक वर्णन कऽ गेल छथि । दही…सत्वकगुण, चूडा…तमोगुण, चीनी…रजोगुण ।
हम कहलिऐन्हद—खट्टर कका, अहाँक त सभटा कथा अद्भुते होइत अछि । ई हम कतह नहि सुनने छलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हमर कोन बात एहन होइ अछि ने तों आनठाम सुनि सकबह ?
हम— खट्टर कका, त्रिगुणक अर्थ दही चूडा चीनी, से कोना बहार कैलियैक ?
खट्टर कका—देखह, असल त्वि खहिएमे शहैत छैक, तैं एकर नाम सत्व । चीनी गर्दा होइछ, तैं रज । चूडा रुक्षतम होइछ, तैं तम । देखै छह नहि, अपना देशमे एखन धरि “तमहा” चूडा शब्द प्रचलित अछि ।
हम—आश्चतर्य ! एहि दिस हपर ध्या न नहि गेल छल ।
खट्टर कका व्या ख्याल करैत बजलाह—देखह, तमक अर्थ छैक अन्ध।कार । तैं छुच्छ चूडा पात पर रहने आँखिक आगाँ अन्हाेर भऽ जाइ छैक । जखन उज्ज र दही ओहि पर पडि जाइ छैक तखन प्रकाशक उदय होइ छैक । तैं सत्व गुण कें प्रकाशक
कहल गेलैक अछि । “सत्वंा लघु प्रकाशकमिष्ट म्” । तैं दही लघुपाकी तथा सभ कैं इष्टओ (प्रियगर) होइत अछि । चूडा कोष्ठघ कैं बान्हि् दैत छैक । तैं तम कैं अवरोधक कहल गेल छैक । और बिना रजोगुणे त क्रियाक प्रवर्तन हो नहि । तैं चीनीक योग बेत्रेक खाली चूडा दही नहि घोंटा सकैत छैक । आब बुम�लहक ?
हम कहलिऐन्ह — धन्य छी खट्टर कका । अहाँ जे ने सिद्ध कऽ दी !
खट्टर कका बजलाह—देखह, साँख्यषक मत सँ प्रथम विकार हाइ छैक महत् वा बुद्धि । दहि चूडा चीनी खैला उत्तर पेटमें फूलि कय पसरैत छैक । यैह महत् अवस्थाक थिकैक । एहि अवस्थाडमे गप्पख खूब फुरैत छैक । तैं महत् कहू वा बुद्धि…बात एक्केि थिकैक । परन्तुि एकरा हेतु सत्व गुणक आधिक्या होमक चाही अर्थात दही बेशी होमक चाही ।
हम—अहा ! साँख्यन दर्शनक एहन तत्व् दोसर के कहि सकैत अछि ।
खट्टर कका बजलाह—यदि एहिना निमन्त्र ण दैत रहह त क्रमशः सभ दर्शनक तत्व वुम�ा देवौह । त्रिगुणत्मिवका प्रकृति द्रष्टाी पुरुष कैं रिम�बैत छथि । एकर अर्थ जे ई त्रिगुणत्मवक भोजन भोक्ता पुरुष कैं नचवैत तथि । तैं—नृत्यकन्तिि भोजनैर्विप्राः ।
हम कहलिऐन्हत—परन्तु् खट्टर कका ! पछिमाहा सभ त दही चूडा चीनी पर हँसैत छथि ।
खट्टर कका अङपोछा सँ भाँग छनैत बजलाह—हौ, सातु लिट्टी खैनिहार दधि—चिपटान्न क सौरभ की बुम�ताह ! पिह्चजमक जेहन माटि बज्ज र, तेहने अन्नप बजरा, तेहने लोको बज्र सन । अपना देहक भूमि सरस, भोजन सरस, लोको सरस । चूडा पृथ्वी तत्वे…दही जल तत्व ….चीनी अग्निज तत्वन । तैं कफ पित्त वायु—तीनू दोष कैं शमन करबाक सामर्थ्य एहिमे छैक । देखह, अनादि काल सँ दही चूडा चीनीक सेवन करैत—करैत हमरा लोकनिक शोणित ठण्ढाप भऽ गेल अछि । तैं मैथिल जाति कैं आइ धरि कहियो युद्ध करैत देखलहक अछि ?
हम— खट्टर कका, कहाँ सँ कहाँ शह चला देलहुँ । बीच—बीचमें तेहन मार्मिक व्यँ ग्यथ कऽ दैत छिऐक जे………..
खट्टर कका—व्यँ ग्यछ नहि, यथार्थे कहैत छिऔह । देखह, भोजने सँ प्रकृति वनैत छैक । चाली माटि खा कऽ माटि भेल रहैत अछि । साँप बसात पीवि कऽ फनकैत अछि । साहेब सभ डवल रोटी खा कऽ फूलल रहैत अछि । मुर्गा खैनिहार मुर्गा जकाँ लडैत अछि । और हम सभ साग—भाँटा खा कऽ साग—भाँटा भेल छी । हमरा लाकनि भक्त (भात)क प्रेमी थिकहुँ, तैं एक दोसरा सँ विभक्त रहैत छी । ताहु पर की त द्विदल (दालि)क योग भेले ताकय ! तखन एक दल भऽ कऽ कोना रहि सकैत छी ?
हम—अहा ! की अलँकारक छटा !
खट्टर कका—केवल अलँकारे नहि, विज्ञानो छैक । कोनो जातिक स्विभाव बुम�बाक हो त देखी जे ओकर सभ सँ प्रिय भोजन की थिकैक ? देखह, बँगाली ओ पच्छाँ हीक स्वटभावमे की अनतर छैक ?……जैह भेद रसगुल्ला ओ लड्डुमे छैक । रसगुल्ला‍ सरस ओ कोमल होइछ, लड्डू शुष्क. ओ कठोर । रसगुल्लाल पूर्वक प्रतीक थीक, लड्डू पश्चिामक । तैं हम कहैत छिऔह जे ककरो जातीय चरित्र बुम�वाक हो त ओकर प्रधान मधुर देखी ।
हम— खट्टर कका, अपना सभक प्रधान मधुर की थीक ?
खट्टर कका—अपना सभक प्रधान मधुर थीक खाजा । देहातमे पिठाइ कहने ओकरे बोध होइछ । खाजा ने रसगुल्लाम जका
ँ स्निबग्धो होइछ, ने लड्डू जकाँ ठोस । तैं हमरा लोकनिमे ने बँगालीवला स्ने ह अछि, ने पँजाबीवला दृढता ।…….तखन खाजामें प्रत्युक परत फराक—फराक रहैत छैक, से अपनो सभमे रहितहि अछि ।
हम—वाह ! ई त चमत्कािरक गप्प कहल ! मौलिक !
खट्टर कका—ऐंठ वा बासि बात हम बजितहिं ने छी ।
हम—वास्तछवमे खट्टर कका ! अहाँ ठीक कहै छी । गाम—गाममे गोलैसी, घर—घरमें पट्टीदारी म�गडा । कचहरीमे पागे पाग देखाइत अछि । से किऐक ?
खट्टर कका—एकर कारण जे हमरा लोकनि आमिल मरचाइ बेसी खाइत छी । तीख चोख भेले ताकय । तीतोमे कम रुचि नहि । नीम—भाँटा, करैल, पटुआक म�ोर…..। ह्‍ौ, जैह गुण कारणमे हतैक ुैह ने कार्यमे प्रकट हैतैक ! कटुता, अम्ल�ता ओ तिक्ताता हमरा लोकनिक आग बनि गेल अछि । स्वाकइत हम सभ अपनामे एतेक कटाउम� करैत छी !
हम—परन्तुै बँगाली सभमे एतेक प्रेम किऐक ?
खट्टर कका भाँगमे एक आँजुर चीनी मिलबैत बजलाह—ओ सभ प्रत्येाक वस्तु मे मधुरक योग दैत छथि । दालिओ मीठ, तरकारिओ मीठ, माछो मीठ, चटनिओ मीठ ! तखन कोना ने माधुर्य रहतैन्ही ? अपनो जातिमे एहिना मीठक व्युवहार होमऽ लागय तखन ने ! तैं हम कहैत छिऔह जे अपना जातिमे जौं सँगठन करबाक हो त मधुरक बेसी प्रचार करह । केवल सभा कैने की हैतौह ? —“भोज ने भात ने, हरहर गीत !“गाम सँ दुगोला दूर करबाक हो त “दही चूडा चीनी लवण कदली लड्डू बरफी”क भोज करह ।
ई कहि खट्टर कका भाङ्गक लोटा उठौलन्हि और दू—चारि बुँद शिवजीक नाम पर छीटि घट्टघट्ट कय सभटा पीबि गेलाह ।
( हरिमोहन झा , खट्टर ककाक तरँग सँ)

tags - Kahani harimohan jha

1 comment:

  1. Bhasha ko shuddh rakhne ka prayas nahi kiya gaya hai, kripya maithili ko shuddh banaye rakkha jay.
    Dhanyawad.

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