आत्मबल- १
फ्रान्सक कथा थिक। रास्ता बगलक पहाड़ीपर बैस एक गोटे अपन जुत्ता मरम्मत करबैत रहथि। एकटा ढेरबा बच्चा जुत्ता मरम्मत करै छल। ओइ बच्चाक बगए-बानिसँ गरीबी झलकैत रहए। मुदा आत्मबल आ लगन मजगूत छलैक। जुत्ता मरम्मत करा ओ आदमी एक रुपैया पारिश्रमिक दऽ चलए लगल। मुदा माएक विचार ओहिना ओइ बच्चाक हृदेमे जीबैत छल। बच्चा अपन उचित पाइ काटि बाकी घुमबए लगल। ओ महानुभाव, जूत्ता मरम्मत करौनिहार, सभ पाइ रखि लइले कहलक। तइपर बच्चा बाजल- “हमर जतबे उचित मजूरी हएत, ओतबे लेब। माए कहने छथि जे जतबे श्रम करी ओतबे मजूरी ली।”
बच्चाक बात सुनि ओ गुम्म भऽ, ओइ बच्चाकेँ उपरसँ निच्चाँ घरि निङहारए लगल। वएह बच्चा फ्रान्सक राष्ट्रपति दगाल भेलाह।
आत्मबल-२
जइ समैमे डॉक्टर राधाकृष्णन कओलेजमे पढ़ति रहथि, घटना ओइ समैक छी। कॉलेजमे पादरी शिक्षक अधिक।
एक दिन एकटा प्रोफेसर, क्लासेमे हिन्दू धर्मक निन्दा खुलायाम केलनि। बालक राधाकृष्णन सेहो क्लासमे रहथि। प्रोफेसरक बातसँ हुनका एते क्रोध भेलनि जे सम्हारि नै सकलाह। उठि कऽ ठाढ़ होइत पुछलखिन- “महाशय, की इसाई धर्म, आन धर्मक निन्दा केनाइ सिखबैत अछि?
राधाकृष्णनक प्रश्न सुनि ओ तमसा कऽ बाजला- “और की हिन्दुधर्म दोसराक प्रशंसा करैत अछि।”
राधाकृष्णन जबाब देलखिन- “हँ। हम्मर धर्म कोनो धर्मक अधलाह नै करैत अछि। गीतामे कृष्ण कहने छथिन- कोनो देवताकेँ उपासना केलासँ हमरे उपासना होइत अछि। आब अहीं कहू जे हम्मर धर्म ककर निन्दा करैत अछि।”
प्रोफेसर निरुत्तर भऽ गेलाह।
रचनाकार- जगदीश प्रसाद मण्डल
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